तिश्ना-ए-फैज़
Friday, 5 August 2011
बाकी है .....
उसे भूल गया पर
यादें अभी बाकी है .
किस्से तो भूल गया पर बातें अभी बाकी है .
क़द्र दान रहेगा दिल उसका तब तक .
जब तक जिस्म में कतरा - ऐ - जान बाकी है ......_
राज़ - ऐ -दिल
राज़ दिल का दिल में दबा रह गया .
समंदर अस्को का यूँ ही बह गया .
हमने तमन्ना न की थी कभी इसी तकदीर की .
बजाहिर दर्द - ऐ -
दिल'
फ़ैज़' आँखों से कह गया .........)
तारीफ़ .......
तेरी
तारीफ़ में जो मजा है.
उसके हम दिल से कायल थे .
हंमे ये न मालूम था की .
आग उधर भी लगी है ......
Tuesday, 2 August 2011
शुरुआत .........
आपकी जुल्फे हमें छावं के लिए थी काफी ,
अपने आँगन में और सज़र लगाऊं कैसे ?
आपकी चाहत ही थी बहुत हमारे लिए ,
किसी और की चाहत के लिए एस दिल को मनाऊं कैसे .............?
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